A SIMPLE KEY FOR HANUMAN CHALISA UNVEILED

A Simple Key For hanuman chalisa Unveiled

A Simple Key For hanuman chalisa Unveiled

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“Ailments is going to be finished, all pains will be gone, any time a devotee constantly repeats Hanuman the courageous’s identify.”

व्याख्या – गुरुदेव जैसे शिष्य की धृष्टता आदि का ध्यान नहीं रखते और उसके कल्याण में ही लगे रहते हैं [ जैसे काकभुशुण्डि के गुरु], उसी प्रकार आप भी मेरे ऊपर गुरुदेव की ही भाँति कृपा करें ‘प्रभु मेरे अवगुन चित न धरो।’

भावार्थ – हे हनुमान जी! [जन्म के समय ही] आपने दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को [कोई] मीठा फल समझकर निगल लिया था।

O the Son of Wind, You tend to be the destroyer of all sorrows. You are the embodiment of fortune and prosperity.

All problems cease with the just one who remembers the potent lord, Lord Hanuman and all his pains also come to an conclusion.

लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥ जुग सहस्र जोजन पर भानु ।

sugamaSugamaEasy anugrahaAnugrahaGrace tumhareTumhareYour teteTeteThat This means: Every single tricky activity on the planet gets straightforward by your grace.

बिना श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता जी के श्री हनुमान जी का स्थायी निवास सम्भव भी नहीं है। इन चारों को हृदय में बैठाने का तात्पर्य चारों पदार्थों को एक click here साथ प्राप्त करने का है। चारों पदार्थों से तात्पर्य ज्ञान (राम), विवेक (लक्ष्मण), शान्ति (सीता जी) एवं सत्संग (हनुमान जी) से है।

व्याख्या – कोई औषधि सिद्ध करने के बाद ही रसायन बन पाती है। उसके सिद्धि की पुनः आवश्यकता नहीं पड़ती, तत्काल उपयोग में लायी जा सकती है और फलदायक सिद्ध हो सकती है। अतः रामनाम रसायन हो चुका है, इसकी सिद्धि की कोई आवश्यकता नहीं है। सेवन करने से सद्यः फल प्राप्त होगा।

tina keTina keWhose / his kājaKājaWork / activity sakala SakalaAll tumaTumaYou sājāSājāCarried / do Indicating: Lord Rama is definitely the king of all ascetics and he who requires refuge to him, you may take care of/take care of all their tasks/functions.

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥ सब पर राम तपस्वी राजा ।

नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

क्या चलते-फिरते हनुमान चालीसा पढ़ सकते हैं?

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥ ॥दोहा॥ पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।

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